नेपाल में बादल फटने के कारण जलमग्न हुए उत्तराखंड के धारचूला के खोतिला गांव

उत्तराखंड

नेपाल में बादल फटने के कारण जलमग्न हुए उत्तराखंड के धारचूला के खोतिला गांव में अब केवल तबाही के निशान बाकी हैं ।

 

जहां दिनभर चहल-पहल रहा करती थी वहां पिछले सात दिन से सन्नाटा पसरा हुआ है। सात दिन बाद भी लोग वो काली रात का मंजर भूल नहीं पा रहे हैं। गांव के लगभग 60 परिवारों के 150 आपदा प्रभावित धारचूला के स्टेडियम में बनाए गए अस्थायी शिविर में रह रहे हैं।

नेपाल के दार्चुला जिले के लास्को में 9 सितंबर की रात बादल फटा था। इसके चलते काली नदी उफान पर आ गई थी। नेपाल में तबाही करने के बाद काली नदी का पानी धारचूला के खोतिला गांव में घुस गया था। किसी तरह समय रहते घरों से बाहर निकालकर ऊपरी क्षेत्र की ओर भागने से लोगों की जान बची। हालांकि एक महिला के बाहर नहीं निकल पाने से कमरे के भीतर ही पानी में डूबने से मौत हो गई थी।

गांव में रहने वाले सभी मकानों के जलमग्न होने से घरों में रखा गया राशन, गहने, नकदी सहित सारा सामान मलबे में दब गया। गांव के लगभग डेढ़ सौ लोग इस समय धारचूला के स्टेडियम में शरण लिए हुए हैं। इनमें से अधिकतर परिवारों के पास कपड़े तक नहीं हैं। सभी ग्रामीण मुश्किलों और भविष्य की चिंता के बीच स्टेडियम में दिन-रात गुजार रहे हैं।

आपदा के सात दिन बाद भी हालात सामान्य नहीं हुए हैं। पूरे गांव में आंगन से लेकर मकानों के भीतर तक टनों मलबा और रेत जमा है। जलस्तर कम नहीं होने से रेत में दबी जमा पूंजी, गहने सहित अन्य सामान मिलने की उम्मीद में रोज गांव आ रहे लोगों को निराश होना पड़ रहा है। लोगों ने प्रशासन से मलबे में दबा उनका कीमती सामान निकालने की मांग की है।

बादल फटने से गांव में घुसे पानी और मलबे से प्राथमिक स्कूल का भवन भी ध्वस्त हो गया है। स्कूल भवन के कक्षों और कार्यालय कक्षों में मलबा घुसा है। स्कूल तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं है। इस स्कूल में पढ़ने वाले सभी बच्चे शिविर में हैं। एक सप्ताह से शिविर में बैठे यह बच्चे अब परेशान होने लगे हैं।

लोगों का कहना है कि बादल फटने के बाद जब गांव जलमग्न हो रहा था तभी कुछ लोगों की नींद खुलने से वह समय रहते सतर्क हो गए और सुरक्षित स्थानों पर पहुंच गए। यदि वह समय पर नहीं जागते तो बड़ी जनहानि हो सकती थी। खोतिला गांव में दुकान चलाने वाले गजेंद्र बहादुर को भी इस आपदा में भारी नुकसान उठाना पड़ा है। उनकी दुकान का पूरा सामान मलबे में दबा है। वेल्डिंग वाली मशीन भी मिट्टी में दबने से खराब हो चुकी है।

उन्होंने बताया कि नौ सितंबर की रात जब गांव में नदी का पानी आया तो मिट्टी की अजीब सी गंध महसूस हुई। बाहर बारिश और नदी का बहुत शोर था। जब आंख खुली तो कमरे में पानी भर गया था। इसके बाद उन्होंने शोर कर परिवार के सदस्यों और आसपास के लोगों को जगाया। इसके बाद जो जिस हाल में था उसी हाल में गांव के ऊपरी हिस्से की ओर दौड़ लगा दी। गांव के युवाओं ने लोगों को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया।

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