योजनाओं के नाम पर पैसों की बर्बादी कैसे की जाती है, इसको देखना हो तो तहसील चौक पर बने फुट ओवरब्रिज को देखें। वर्ष 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इसका उद्घाटन तो कर दिया था, लेकिन तब से आज तक ब्रिज के ताले ही नहीं खुले।
करीब पौने दो करोड़ रुपये की लागत से बने फुट ओवरब्रिज का वर्तमान में इस्तेमाल केवल विज्ञापनों के प्रचार-प्रसार के लिए किया जा रहा है। इस फुट ओवरब्रिज को मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) ने एक करोड़ 85 लाख रुपये में पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड पर हरियाणा की कंपनी से करवाया था। निर्माण के बाद से ही ब्रिज पर ताले लटके हुए हैं।
वर्तमान में यह फुट ओवरब्रिज नेताओं, पार्टियों आदि के विज्ञापनों के प्रचार-प्रसार का केंद्र बन गया है। तहसील चौक पर भीड़ के चलते लोगों को सड़क पार करने में दिक्कत न हो, इसके लिए यहां फुटओवर ब्रिज बनाया गया। दिव्यांगों को कोई परेशानी न हो इसके लिए ब्रिज के दोनों छोर पर लिफ्ट भी लगाई गई, लेकिन यह फुटओवर ब्रिज सफेद हाथी साबित हो रहा है। निर्माण के बाद से ब्रिज में कोई आवाजाही नहीं हो पाई है।
कंपनी को 30 साल तक संचालन का जिम्मा
तहसील चौक पर बने फुटओवर ब्रिज का निर्माण पीपीपी मोड पर हरियाणा की कंपनी द्वारा किया गया था। तय हुआ था कि ब्रिज बनाने वाली कंपनी 30 साल तक इसका संचालन करेगी और विज्ञापन के माध्यम से खर्चा निकालेगी।
फुटओवर ब्रिज का निर्माण वर्ष 2015 में उनकी सरकार के समय हुआ था, लेकिन कुछ दिन चलने के बाद बंद कर दिया गया। उनकी ओर से कई बार नगर निगम से इसे अपने कब्जे में लेकर संचालन करने की मांग की गई थी। साथ ही अगर इसका उपयोग नहीं हो रहा, तो इसे हटाने की मांग की थी, लेकिन आज तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
– राजकुमार, पूर्व विधायक
जब इसको बनाया गया था, तभी विरोध किया था। ब्रिज कांग्रेस सरकार ने केवल अपने कार्यकर्ताओं और अफसरों के फायदे के लिए बनाया। कांग्रेस सरकार की उस समय चार और जगह फुटओवर ब्रिज बनाने की योजना थी, लेकिन विरोध के कारण नहीं बन पाए। तहसील चौक पर बनाया गया फुटओवर ब्रिज केवल पैसों की बर्बादी साबित हो रहा है।