इस बार जब मैं उत्तराखंड गया तो वहां पहाड़ों पर एक नया “सनरूफ कल्चर” देखा । देखता तो कई बार से आ रहा हूं , लेकिन इस बार तो अति ही हो रही थी। पर्यटकों की हर तीसरी कार की छत से बाहर निकलते लोगों को देखकर मन में एक सवाल आया कि आखिर हमारी उत्तराखंड पुलिस क्या कर रही है? क्यों पुलिस ऐसे जानलेवा दृश्य देखकर भी आंखों पर पट्टी बांधे रखती है? आखिर उत्तराखंड पुलिस की क्या मजबूरी है कि वह मूकदर्शक बनी रहती है?
सनरूफ सिर्फ चलती कार से बाहर निकलने का ही साधन नहीं है बल्कि एक कार में सनरूफ का मुख्य कार्य वैन्टीलेशन का होता है। सनरूफ की मदद से आप कार के केबिन में नेचुरल लाइट पा सकते हैं, क्योंकि यह कार विंडो के मुकाबले ज्यादा लाइट को पास करता है।
इसके अलावा जब कभी आपकी कार अधिक देर तक धूप में खड़ी रहती है तो आप सनरूफ खोलकर केबिन को जल्दी ठंडा कर सकते हैं, साथ ही इसके जरिए आप खुले आसमान का आनंद भी ले सकते हैं, जिससे आपको लंबे सफर के दौरान थकावट महसूस नहीं होती है।
पहाड़ों पर अधिकतर लोग सनरूफ का प्रयोग बच्चों अथवा खुद को कार से बाहर निकालने के लिये करते रहते हैं जोकि यातायात नियमों के विरुद्ध व काफ़ी जोखिम भरा होता है, इससे दुर्घटना की प्रबल संभावना बनी रहती है। अगर उत्तराखंड सरकार नियमों के अनुसार ऐसे कार चालकों का चालान काटे तो लाखों रुपए रोजाना का राजस्व सरकार को मिल सकता है। सवाल यह कि फिर क्यों नहीं काटती उत्तराखंड पुलिस ऐसे लोगों के चालान?