छोटे राज्य का बड़ा फैसला…भाजपा शासित राज्यों के लिए उत्तराखंड बन सकता है नजीर

उत्तराखंड राजनीति

2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान, मुख्यमंत्री धामी ने जस्टिस देसाई की अध्यक्षता में यूसीसी को लागू करने के लिए एक समिति बनाई। ड्राफ्ट बनाने के लिए मुख्यमंत्री ने समिति का कार्यकाल तीन बार बढ़ाया। इस दौरान, समिति ने यूसीसी को ऑनलाइन और ऑफलाइन जनता से सुझाव मांगे।

दशकों से देश में समान कानून लागू करने की वकालत एक बड़ा वर्ग कर रहा है। भाजपा, जो केंद्र और राज्य में शासन करती है, पिछले कई वर्षों से देश में एक समान नागरिक संहिता लागू करने का अवसर देख रही है। ऐसे में, भाजपा शासित छोटे से राज्य उत्तराखंड ने समान नागरिक संहिता लागू करने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। उसकी इस निर्णय पर न सिर्फ देश की तरह पूरी दुनिया की निगाह है।

जानकारों का मानना है कि यह निर्णय सामाजिक कुप्रथाओं से परेशान वर्गों को राहत देगा और उम्मीद को सामाजिक ताने-बाने में भर देगा।साथ ही, लोकसभा चुनाव से ठीक पहले यूसीसी लागू करने के लिए बनाई गई अंतिम रिपोर्ट को मुख्यमंत्री को सौंपने के राजनीतिक अर्थ भी हैं।

देश भर में लाखों पार्टी समर्थकों और लंबे समय से एक समान कानून के पक्षधरों ने धामी सरकार की इस कार्रवाई को वैचारिक आधार दिया है। यूसीसी के उत्तराखंड के लिटमस टेस्ट पर देश के हर राज्य, जहां भाजपा और उसके समर्थन से सरकारें चल रही हैं, की नजर है। उत्तराखंड का यूसीसी मॉडल इन सभी राज्यों के लिए लागू हो सकता है, लेकिन यह कितना प्रभावी होगा, इसे भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व गहराई से देख रहा है।

केंद्रीय नेतृत्व ने हर कदम पर नज़र रखी

पार्टी से जुड़े सूत्रों ने बताया कि यूसीसी की विशेषज्ञ समिति के गठन से लेकर ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार करने और इसे सौंपे जाने तक केंद्रीय नेतृत्व का ध्यान रहा है। अब वह देखेगा कि सरकार इसे कैसे लागू करती है। जानकारों का मानना है कि उत्तराखंड में खुली इस खिड़की से निकलने वाली यूसीसी की हवा दूसरे राज्यों में पहले से ही प्रभावी होगी। इसे प्रभावी ढंग से लागू करने की अगली चुनौती यूसीसी की ड्राफ्ट रिपोर्ट बनाना है।

अब तक की सूचनाओं के अनुसार, मिलेगी राहत ड्राफ्ट रिपोर्ट में महिलाओं और बेटियों पर अधिक फोकस है। बेटियों को उत्तराधिकार, विरासत, संपत्ति में बराबरी का हक, तलाक के लिए कुलिंग पीरियड के समान अधिकार, बहु विवाह पर रोक और विवाह पंजीकरण को अनिवार्य करना जैसे कई कानून महिलाओं और बेटियों के हित में खड़े नजर आते हैं।

विचारधारा को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी

राजनीतिक जानकारों का मत है कि देश में दशकों से समान कानून बनाने की बहस होती रही है। ये मुद्दे राजनीतिक, सामाजिक और कानूनी रूप से उठते रहे हैं। न्यायालयों में जनहित याचिकाओं के माध्यम से भी इसे लागू करने की कोशिश की गई, जिससे हर वर्ग को राहत मिलेगी।

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