मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का हर भाषण अब कुछ तयशुदा शब्दों के इर्द-गिर्द घूमने लगा है – “फेक नैरेटिव”, “अर्बन नक्सल” और “जिहाद”। मानो उनके पास इन्हीं तीन शब्दों में पूरी राजनीति छिपी हो। ऐसा लगता है कि अगर इन तीन शब्दों को उनके भाषण से हटा दिया जाए, तो मुख्यमंत्री के पास जनता से कहने को कुछ भी नहीं बचेगा। असल मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए अब यही शब्द उनकी ढाल बन गए हैं।
प्रदेश में एक के बाद एक घोटालों के खुलासे हो रहे हैं। कहीं भर्ती घोटाला है, कहीं खनन में लूट मची है, कहीं सरकारी ज़मीनों को खुर्दबुर्द किया जा रहा है। भाजपा के नेता भ्रष्टाचार और महिला उत्पीड़न जैसे गंभीर मामलों में फँसे हुए हैं, मगर मुख्यमंत्री आंख मूँदकर बैठे हैं। स्वास्थ्य विभाग में तो भ्रष्टाचार की हद ही पार हो गई। जहाँ कुछ हज़ार रुपये की मशीनें लाखों में खरीदी जा रही हैं और करोड़ों रुपये हज़म कर लिए जाते हैं। वहीं दूसरी ओर, जनता के टैक्स का 1001 करोड़ रुपये मीडिया में अपनी छवि चमकाने पर बहा दिया गया है, जबकि पहाड़ के अस्पतालों में दवाइयाँ नहीं हैं, स्कूलों में अध्यापक नहीं हैं और सड़कों पर गड्ढे ही गड्ढे हैं।
प्रदेश की जनता यह भी जानती है कि भाजपा के अंदर ही एक बड़ी लॉबी मुख्यमंत्री धामी को उनकी कुर्सी से हटाने की साज़िश में लगी हुई है। मगर इन तमाम मुद्दों पर बात करने की बजाय मुख्यमंत्री हर बार वही पुराने शब्द दोहराकर जनता की भावनाओं से खेलते हैं। सच्चाई यह है कि जब सरकार के पास काम का कोई ठोस रिकॉर्ड न हो, जब भ्रष्टाचार और नाकामी हर स्तर पर दिखने लगे, तो “फेक नैरेटिव”, “अर्बन नक्सल” और “जिहाद” जैसे शब्द ही आखिरी सहारा बन जाते हैं। मुख्यमंत्री के भाषण अब जनता के सवालों का जवाब नहीं, बल्कि असफलता को ढकने का जरिया बन चुके हैं।