अंकिता हत्याकांड के बाद ऐसा क्या हुआ कि लोगों का आक्रोश अभी भी कम नहीं हुआ बल्कि और बढ़ता जा रहा है।

उत्तराखंड

कोटद्वार में अभूतपूर्व बंद।
उत्तराखंड आंदोलन की यादें हुई ताज़ा

कुछ मुद्दे ऐसे होते है जो धर्म,जाति,पार्टी और क्षेत्र की सीमाओं से दूर होते है। उत्तराखंड में राजधानी, सशक्त भू कानून और महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों पर शायद ही कोई पार्टी,जाति,धर्म या क्षेत्र के लोगों को असहमति हो।

अंकिता हत्याकांड के बाद ऐसा क्या हुआ कि लोगों का आक्रोश अभी भी कम नहीं हुआ बल्कि और बढ़ता जा रहा है। इस संवेदनशील मुद्दे पर बीजेपी का चाल और चरित्र भी उजागर हुआ। पार्टी विद डिफरेंस का नारा देने वाली पार्टी के किसी भी बड़े नेता ने अंकिता के माँ बाप से आज तक माफी नहीं मांगी। बीजेपी अध्यक्ष से तो उम्मीद नहीं कर सकते लेकिन सीएम धामी, पूर्व सीएम तीरथ, त्रिवेंद्र रावत, विजय बहुगुणा, बीसी खंडूडी, रमेश पोखरियाल निशंक सहित कई बड़े नेताओं,सांसदों और विधायकों ने आज तक कोई भी क्षमा नहीं मांगी। जबकि अपराध उन्हें के परिवार यानी पार्टी के सदस्य ने किया। पार्टी से निकालना और श्रद्धांजलि अर्पित कर पार्टी ने इतिश्री कर दी।

बीजेपी के कार्यकर्ताओं और नेताओं पहले प्रदेश के वासी है। उसके बाद आप बीजेपी से जुड़े है। कुछ मामलो में आपको आगे आना होगा।केवल श्रद्धांजलि से काम नहीं होगा। आप खुद भी इस मुहीम में शामिल हो जाइये।अगर प्रदेश को आप भय मुक्त, नशा मुक्त, अपराध मुक्त बनाना चाहते है। अंकिता के साथ जो भी हुआ उसका विरोध करिये उसके परिवार से माफी मांगिए।

आखिर क्या ये गुस्सा कई और मुद्दों को हवा दे रहा। हाकम सिंह भी बीजेपी से जिला पंचायत चुनाव जीता उसके सभी बड़े नेताओं के साथ फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुई। किसी भी बीजेपी नेता ने युआओ से माफी नहीं मांगी। क्या पार्टी के बड़े नेताओं की ये नैतिक जिम्मेदारी नहीं है। केवल जाँच और दोषियों पर कार्यवाई होनी चाहिए यही बयां सभी दे रहे है।

ये गुस्सा केवल अंकिता को लेकर नहीं उभरा, ये भर्तियों में घोटाला, नेताओं की अपने चाण बाण को विधानसभा में एडजस्ट करने, भू कानून सहित कई और सुलगते मामलों की है।ये आग इसलिए भी भड़क रही है कि जनता ने खास तौर पर पहाड़ की देवियों ने बीजेपी को 2 बार प्रचंड बहुमत से लोक सभा और विधानसभा में भेजा और जनता को ठगने और महिलाओं की इज्जत पर हमला भी बीजेपी के नेताओं ने किया। इसलिए ये गुस्सा अपने चरम पर है।

बीजेपी पार्टी ही नहीं संघ पर भी हाल में हुई घटनाओं ने कई दाग लगा दिए है। हालांकि चुनाव में अपने संसाधन और चुनाव तंत्र के भरोसे पार्टी फिर जीत हासिल कर लेगी लेकिन इन घटनाओं ने बीजेपी के उन हजारों कार्यकर्ताओ का भी मनोबल तोड़ दिया।अंकिता भंडारी की आत्मा देख रही तो यही सोचती होगी कि उसने अलग अलग सोच, विचारधारा, क्षेत्र के लोगों को अपने बलिदान से एकजुट कर दिया लेकिन जिस पार्टी के सदस्य उसकी मौत के जिम्मेदार है वो 2 अक्टूबर के दिन अपने घरों में बंद थे। ना मशाल जुलूस में आये ना अपने घर में दिया जलाया।वो सोचती होंगी कि देवभूमि के लोग उसको न्याय दिलाने के लिए सड़को पर आज भी मशाल जुलुस और कैडिल मार्च निकाल रहे है। शायद अंकिता के बहाने उत्तराखंडी लोग पहाड़ के ज्वलंत मुद्दों पर एकजुट हो।

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