लोक मान्यता है कि एक समय आएगा, जब जोशीमठ से आगे अलकनंदा नदी के दायें और बायें किनारों पर तीव्र ढाल बनाते हुए जय, विजय नाम के ऊंचे पहाड़ आपस में मिल जाएंगे।
इससे बदरीनाथ धाम जाने वाला मार्ग बंद हो जाएगा। लोक मान्यता यह भी है कि इस भौगोलिक घटना के चलते भगवान बदरीनाथ अपने मूल स्थान से अंतर्ध्यान हो जाएंगे।
पौराणिक किंवदंतियों पर चर्चा तेज
जोशीमठ में भूधंसाव की घटना तीव्र होने के बीच इन पौराणिक किंवदंतियों पर भी चर्चा तेज हो गई हैं। इन किंवदंतियों को विज्ञान की कसौटी पर परखने के लिए भूविज्ञानी व उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के निदेशक डा. एमपीएस बिष्ट व वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के सेवानिवृत हिमनद विशेषज्ञ डा. डीपी डोभाल चमोली जिले के सुबई गांव पहुंचे।
विज्ञानियों ने यह भी स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य किसी की भी धार्मिक भावना को आहत करना नहीं है। विज्ञानी होने के नाते उनका कर्तव्य है कि वह तमाम किंवदंतियों के चलते नागरिकों के मन में बैठे डर को दूर कर ठोस विज्ञानिक कारण बताएं।
अंतर्ध्यान होने के बाद सुबई गांव क्षेत्र में अवतरित होंगे भगवान बदरी
यूसैक निदेशक डा. एमपीएस बिष्ट के मुताबिक, किंवदंतियों के अनुसार भगवान बदरीनाथ के मूल स्थान से अंतर्ध्यान हो जाने के बाद सुबई गांव क्षेत्र में अवतरित होंगे।
यह स्थान जोशीमठ से मलारी की तरफ करीब 30 किलोमीटर दूर 2600 मीटर की ऊंचाई पर है। पौराणिक मान्यता है कि यहां आदि गुरु शंकराचार्य ने देवदार के घने जंगलों के बीच भविष्य बदरी की स्थापना भी की थी। भविष्य बदरी का एक नवनिर्मित मंदिर गांव के मध्य में स्थित है।