माता-पिता की डांट और जिद पूरी न होने से बच्चे घर छोड़ रहे, जबकि कुछ नशे की लत का शिकार होकर घर से भागकर हरिद्वार पहुंच रहे हैं। यहां पेट की आग बुझाने के लिए भिक्षावृत्ति को मजबूर होते हैं।
सवा साल के अंदर ऐसे ही 54 बच्चों को एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट की टीम ने रेस्क्यू किया है।
करीब 42 के परिजनों को ढूंढकर बच्चों को सुपुर्द किया, जबकि बाकी बच्चों को अनाथालय और बाल गृह में आश्रय भेजा गया है। हरिद्वार धार्मिक नगरी है। एक तरफ यहां हरकी पैड़ी सहित तमाम मंदिर हैं, जबकि दूसरी तरफ पिरान कलियर में दरगाह हैं। हजारों लोग रोजाना हरिद्वार पहुंचते हैं।
दोनों ही स्थलों पर भिखारियों के साथ कई छोटे बच्चे भी भिक्षावृत्ति करते दिखते हैं। इनमें कुछ बच्चे ऐसे होते हैं, जो घर से भागकर पहुंच जाते हैं। दो वक्त की रोटी के लिए भीख मांगने लगते हैं। ऐसे बच्चों को रेस्क्यू कर परिजनों तक पहुंचाने का काम पुलिस की एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट करती है।
आंकड़ों पर गौर करें, तो वर्ष 2022 में यूपी के लखीमपुर खीरी, बदायूं, बड़ौत, मुरादाबाद, नजीबाबाद आदि से 35 बच्चे घर छोड़कर यहां पहुंच गए। नौ से लेकर 14 साल तक के इन बच्चों में करीब छह बच्चे नशे की लत के कारण घर छोड़कर आ गए। हरकी पैड़ी क्षेत्र में गंगा घाटों पर भिक्षावृत्ति करने लगे।
टीम ने इन्हें रेस्क्यू किया और परिजनों की तलाश शुरू की, जिसमें से 31 को परिजनों से मिलवा दिया, जबकि परिजनों का पता न चलने पर तीन को अनाथालय और दो को बाल गृह में आश्रय दिलाया गया है।
जनवरी से अब तक मिले 18 बच्चे
जनवरी से लेकर 22 फरवरी तक 18 बच्चों को टीम ने रेस्क्यू किया है। 11 बच्चों के परिजनों की जानकारी मिल गई। जिसके बाद बच्चों को उन्हें सुपुर्द कर दिया गया, लेकिन सात बच्चों के परिजनों की तलाश चल रही है। जिन्हें फिलहाल, बाल गृह में रखा गया है।
निर्धन परिवारों से हैं अधिकांश बच्चे
अब तक रेस्क्यू किए गए बच्चों में अधिकांश आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से ताल्लुक रखते हैं। 54 बच्चों में पांच फीसदी बच्चे अपने ट्रेन, बस में बैठकर हरिद्वार पहुंच गए, लेकिन वापस जाने का इंतजाम न होने से यहीं रोटी के लिए भिक्षावृत्ति करने पर मजबूर हो गए।
ये टीम करती है काम
सीओ ऑपरेशन निहारिका सेमवाल के नेतृत्व में एएचटीयू प्रभारी निरीक्षक राकेंद्र सिंह कठैत, हेड कांस्टेबल राकेश कुमार, दीपक चंद, महिला कांस्टेबल हेमलता पाल बच्चों को रेस्क्यू कर परिजनों तक पहुंचाने में भूमिका निभाते हैं।
एएचटीयू की टीम को हरकी पैड़ी सहित सभी जगहों पर गुमशुदा और लावारिस बच्चों की तलाश में लगाई गई है। लावारिस हालत में मिलने वाले बच्चों को रेस्क्यू किया जाता है। बच्चों के घर छोड़कर हरिद्वार पहुंचने की अलग-अलग वजह रहती है। कोई परिजनों से नाराज होकर पहुंच जाता है, तो कोई दोस्तों के बहकावे में आ जाता है। ऐसे बच्चों को लगातार रेस्क्यू करते हुए परिजनों से मिलवाने के लिए टीम काम कर रही है।