(Ravindra Jugran, former president of State Agitator Samman Parishad) राज्य आंदोलनकारी सम्मान परिषद के पूर्व अध्यक्ष रविंद्र जुगरान ने राज्य गठन के 23 साल के बाद प्रदेश के हालात को लेकर अपने विचार रखे हैं। इस लेख में उन्होंने बताया कि पलायन हमारी सबसे बड़ी चिंता है। हमें लोगों को गांवों में बनाए रखने की योजना पर गंभीरता से काम करना होगा।
मेरा अनुभव है कि 23 वर्ष बाद भी हम राज्य निर्माण की मूल अवधारणा की बुनियाद भी नहीं रख पाए। पहाड़ का पानी पहाड़ के काम आए। जल, जंगल और जमीन पर हमारा अधिकार हो, यह इंतजार अभी खत्म नहीं हुआ है। हमारी दशा चिंताजनक है और दिशा स्पष्ट नहीं है। निसंदेह हमें इस बात पर गुमान है कि हम दुनिया के अपनी तरह के अहिंसक (non violent) और सफल जनांदोलन के साक्षी रहे।
हमने बताया कि केवल हिंसक युद्ध ही मांगों और मसलों के समाधान नहीं है। लाख बरबता के बावजूद अहिंसा के मार्ग से जायज मांगें मनवाई जा सकती हैं। हमारे यहां हर घर से औसतन एक व्यक्ति सेना या अर्द्धसैनिक बल में है। हम मार्शल कौम हैं फिर भी हमने अहिंसा का ही रास्ता अपनाया।
यूपी की तुलना में उत्तराखंड में भ्रष्टाचार भी कई गुना बढ़ा
पहाड़ की पहाड़ जैसी समस्याओं के समाधान, रोजगार, बेहतर शासन-प्रशासन और अपनी अलग पहचान के लिए ही हमारे लोगों ने शहादतें दीं, मगर अभी तक इस यात्रा में पहाड़ का जनमानस खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है। हमारा हेप्पीनेस इंडेक्स नीचे जा रहा है। अविभाजित उत्तरप्रदेश में लखनऊ से लिए गए फैसले सुदूर पहाड़ में धरातल पर उतर जाते थे।
लेकिन, अपना राज्य बनने के बाद ऐसे ही फैसले देहरादून से लागू नहीं हो पा रहे हैं। गढ़वाल और कुमाऊं मंडलों में रौनक रहती थी। काम होते थे।प्रशासनिक मशीनरी वहीं से चलती थी। आज दोनों कमीशनरी सफेद हाथी बनकर रह गई हैं। पूर्ववर्ती उत्तरप्रदेश की तुलना में उत्तराखंड में भ्रष्टाचार भी कई गुना बढ़ा है।
पर्यावरण संतुलन भी एक बड़ी चुनौती
राज्य का युवा रोजगार के लिए केवल सरकारी नौकरियों पर निर्भर है। हमने परंपरागत कुटीर उद्योग, बागवानी, पशुपालन आदि की घोर उपेक्षा की है, जबकि हम पर्यावरण मित्र उद्योग लगाकर रोजगार भी दे सकते थे। हम नीति-नियोजन बनाने में नाकाम हो गए। सीमांत क्षेत्रों में नागरिक ही पहली पंक्ति के सैनिक होते हैं, जो सेना को सूचना देने, रास्ता बताने और अन्य महत्वपूर्ण कार्य में सहयोग देते हैं।
इन गांवों से लोग पलायन को मजबूर हों तो यह राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से चिंता का विषय भी है। पलायन हमारी सबसे बड़ी चिंता है। हमें लोगों को गांवों में बनाए रखने की योजना पर गंभीरता से काम करना होगा। हिमालयी राज्य के सामने विकास के साथ पर्यावरण संतुलन भी एक बड़ी चुनौती है। हमें बड़ी परियोजनाओं और निर्माण में पर्यावरणीय मानकों की चिंता करनी होगी।
प्रकृति ने उत्तराखंड को भरपूर दिया है, पर हमने उन क्षेत्रों की उपेक्षा की जो हमारी आर्थिकी को सुदृढ़ कर सकते थे। पर्यटन, ऊर्जा, पशुपालन, बागवानी, जड़ी बूटी, उद्यानिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक उद्योग की संभावनाओं का हम दोहन नहीं कर सके, जबकि ये सारे क्षेत्र राज्य के विकास की काया पलट सकते हैं।
हम दुनिया में बढ़ रही जैविक उत्पादों की मांग की पूर्ति करने में सक्षम थे, लेकिन खास नहीं हो पाया। आमदनी के लिए हमारी सरकारों की निर्भरता आबकारी और खनन पर केंद्रित हो गई। इसमें भी भ्रष्टाचार और अनियमितता का बोलबाला व पारदर्शिता का अभाव दिखाई दिया। हमें सोचना होगा कि सेवानिवृत्त हो चुके पूर्व सैनिकों के पास अनुभव और प्रशिक्षण का भंडार है। उनके सहयोग से हम तेजी से विकास पथ पर बढ़ सकते है ।
Ravindra Jugran, former president of the State Agitating Samman Parishad, has expressed his views regarding the situation in the state after 23 years of the formation of the state. In this article he told that migration is our biggest concern. We have to work seriously on the plan to retain people in villages.
My experience is that even after 23 years we have not been able to lay the foundation of the basic concept of state building. The water of the mountain should be useful for the mountain. The wait for us to have rights over water, forests and land is not over yet. Our condition is worrying and the direction is not clear. Undoubtedly, we are proud of the fact that we witnessed the first of its kind non-violent and successful mass movement in the world.
We told that violent war alone is not the solution to the demands and issues. Despite a lot of destruction, legitimate demands can be achieved through the path of non-violence. On an average, we have one person from every household in the army or paramilitary force. We are a martial community, yet we adopted the path of non-violence.
Corruption has also increased manifold in Uttarakhand compared to UP.
Our people sacrificed their lives for the solution of mountain-like problems, employment, better governance and their separate identity, but till now the people of the mountains are feeling cheated in this journey. Our happiness index is going down. In undivided Uttar Pradesh, the decisions taken from Lucknow used to be reflected in the remote mountains.
But, after formation of our own state, similar decisions are not being implemented from Dehradun. There was excitement in Garhwal and Kumaon divisions. Work was done. The administrative machinery used to run from there. Today both the commissionerates have become white elephants. Corruption has also increased manifold in Uttarakhand as compared to erstwhile Uttar Pradesh.
Environmental balance is also a big challenge
The youth of the state are dependent only on government jobs for employment. We have grossly neglected traditional cottage industries, horticulture, animal husbandry etc., whereas we could have provided employment by setting up environment friendly industries. We failed in making policy planning. In border areas, civilians are the first line soldiers, who assist the army in providing information, providing directions and other important tasks.
If people are forced to migrate from these villages, it is also a matter of concern from the national security point of view. Migration is our biggest concern. We have to work seriously on the plan to retain people in villages. Along with development, environmental balance is also a big challenge before the Himalayan state. We have to worry about environmental standards in big projects and construction.
Nature has given Uttarakhand plenty, but we neglected those areas which could strengthen our economy. We could not exploit the potential of tourism, energy, animal husbandry, horticulture, herbalism, horticulture, information technology, electronic industry, whereas all these sectors can turn around the development of the state.
We were able to meet the growing demand for organic products in the world, but not significantly. Our governments became dependent on excise and mining for income. In this too, the prevalence of corruption and irregularities and lack of transparency was visible. We have to think that retired ex-servicemen have a wealth of experience and training. With their cooperation we can move rapidly on the path of development.
Credit by Amar Uajala