मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर 1 अक्तूबर 1994 की रात में आंदोलनकारियों पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने जो नरसंहार का तांडव किया था, उसके जख्म शायद ही कभी भर पाएंगे। उत्तराखण्ड के लिए अलग राज्य की मांग को लेकर गढ़वाल से दिल्ली जा रहे आंदोलनकारीयों को आधी रात को मुजफ्फरनगर में नारसन से लेकर रामपुर तिराहा तक रोक दिया गया था। आंदोलनकारियों मे से सात आंदोलनकारियों को पुलिस ने एक-एक करके गोलियों से भून डाला था। पुलिस ने अचानक लाठीचार्ज व आंसू गैस छोडऩा शुरू कर दिया था।
इससे भी शर्मनाक और अमानवीय घटना तब हुई जब गोलियों की बौछार के बाद सैकड़ो महिलाओं के साथ पुलिस और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने मिलकर सामूहिक बलात्कार किए। उस समय मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री थे। माना जाता है कि मुख्यमंत्री ने ही गोली चलाने के आदेश जारी किए थे। लिहाजा मुलायम सिंह यादव को लोगों को गोलियों से मारने और सामूहिक बलात्कारों की घटनाओं के लिए दोषी माना गया। इस तरह आंदोलनकारियो और बलात्कार पीड़ित महिलाओं को आज तक कोई न्याय नही मिला।
1994 में एक और दो अक्टूबर की रात को पुलिस के संरक्षण में जुल्म और अत्याचार का सुनियोजित तांडव मचाया था। आंदोलनकारियों के शहीद होने पर उत्तराखंड राज्य बना और तब से अब तक उत्तराखंड के कई मुख्यमंत्री बन चुके है हमारे नेता खोखले वादों से आगे नहीं बढ़ पाये। आंदोलनकारियों को न्याय मिला होता तो दोषी सलाखों के पीछे होते। पर ऐसा हुआ नहीं है। इस विषय में सोचना चाहिए। आंदोलनकारियों के संघर्ष व बलिदान की वजह से आज उत्तराखंड एक अलग राज्य बना। इस तरह आंदोलनकारियो और बलात्कार पीड़ित महिलाओं को आज तक कोई न्याय नही मिला।
28 वर्ष बाद भी उत्तराखंड की माँ बहिनों को न्याय नहीं मिला तो क्या उम्मीद की जाय अब उत्तराखंड की माँ बहिनों को न्याय मिलेगा।
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