“ हाँ ! मैं बेटी का बाप हूँ,
लेकिन दूसरे की बेटी पर हुए अत्याचार पर चुपचाप हूँ,
अंकिता पर हुए अत्याचार पर सब मौन है,
वो क्या लगती थी हमारी ? हम उसके कौन है ? “
शायद यही सच्चाई है अब उत्तराखंड की ?
एक गरीब की बेटी जिसने अपनी जान दे दी लेकिन ग़रीबी से समझौता नहीं किया ? जिसने उत्तराखंड के ग़ुरूर के परचम को पूरे देश के सामने लहरा दिया कि उत्तराखंडी बहुत स्वाभिमानी होता है, लेकिन ग़लत को कभी स्वीकार नहीं करता है ?
आज हम उस बेटी को इन्साफ़ दिलाने के लिए खड़े नहीं हो रहे है ?
वो VIP आज भी क़ानून के शिकंजे से दूर है ?
कुछ नहीं तो सोशल मीडिया के माध्यम से, जैसे विधानसभा बैकडोर भर्ती घोटाले को मुद्दा बनाया था, ऐसे ही अंकिता भण्डारी हत्याकांड के इस सफ़ेदपोश को बेनक़ाब करने के लिए मुद्दा बनाइए ?
वरना इस सरकार से उम्मीद करना अब बेकार है ? देखो कैसे विधानसभा बैकडोर भर्ती घोटाले का क्या हश्र हो रहा है ?
जब विंडलास बिल्डर के ख़िलाफ़ CBI की संस्तुति हो सकती है तो फिर अंकिता भण्डारी के हत्याकांड के लिए क्यों नहीं ?