देहरादून राज्य स्थापना यानी 9 नवंबर 2000 के बाद से अब तक 4703 अज्ञात लाशें (4703 unidentified dead bodies found in Uttarakhand) मिल चुकी हैं. रहस्य बनी इन लाशों के आंकड़े भी बेहद चौंकाने वाले हैं. यह आंकड़े जोनल इंटीग्रेटेड पुलिस नेटवर्क (Zonal Integrated Police Network) ने देश के 7 राज्यों में अज्ञात शवों को लेकर जारी किए हैं. जोनल इंटीग्रेटेड पुलिस नेटवर्क ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल, चंडीगढ़, पंजाब और राजस्थान के लिए यह आंकड़े जारी किए हैं.
उत्तराखंड पुलिस (Uttarakhand Police) के रिकॉर्ड में दर्ज हजारों मृतक पिछले 22 सालों से अज्ञात शव के रूप में दर्ज हैं. यह लोग कौन हैं? इनकी मौत की वजह क्या है? यह बात कभी सामने ही नहीं आ पाई. पुलिस के लिए इन अज्ञात डेड बॉडीज का पता लगाना एक बड़ी चुनौती रहा है. उत्तराखंड के अलग- अलग जिलों से मिली कई लाशें तो ऐसे हालात में मिली जिसे देख पाना भी बेहद मुश्किल है. चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें कई लाशें तो किसी के लिए भी पहचान पाना भी मुश्किल है. पुलिस भी इन लाशों के परिजनों के आने का इंतजार करती है. कानूनी प्रक्रिया के तहत एक समय सीमा पूरी होने के बाद ही उनका दाह संस्कार कर दिया जाता है.
राज्य स्थापना यानी 9 नवंबर 2000 के बाद से अब तक ऐसी 4703 लाशें मिल चुकी हैं, जिनको ले जाने ना तो उनके कोई परिजन आए और ना ही इन शवों के बारे में कुछ जानकारी मिल सकी. अज्ञात लाशों के इस आंकड़े को लेकर उत्तराखंड पुलिस के अपर पुलिस महानिदेशक वी मुरुगेशन कहते हैं जो लाशें मिली हैं उनके शिनाख्त न होने की कई वजह हो सकती हैं. उत्तराखंड पर्यटन और तीर्थाटन प्रदेश है. लिहाजा कई राज्यों के यात्री उत्तराखंड आते हैं. इस दौरान उनकी मौत होने पर उनके अपनों का पता नहीं चल पाता. हालांकि इन लाशों को अपराध छुपाने के रूप में उत्तराखंड के विभिन्न जिलों में छोड़ जाने की संभावना से भी पुलिस के अधिकारी इंकार नहीं करते.
उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य के लिए यह बड़ा आंकड़ा है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह उत्तराखंड के पर्यटन प्रदेश के रूप में बड़ी संख्या में पर्यटकों के यहां आने को माना जा रहा है. इसके अलावा शांत प्रदेश होने के चलते अक्सर उत्तराखंड को बड़े अपराधियों की शरण स्थली के रूप में भी माना जाता है. अक्सर अपराधियों की प्रवृत्ति अपराध कर सबूत या लाश को कहीं दूर ठिकाने लगाने की होती है. लिहाजा इस लिहाज से भी उत्तराखंड में इन लाशों को देखा जा रहा है. वैसे तो पुलिस के रिकॉर्ड में इन अज्ञात लाशों को चढ़ा दिया जाता है, लेकिन जिस तरह यह आंकड़ा बढ़ रहा है, पुलिस के लिए यह एक बड़ी चुनौती बन गया है.
इस मामले में रिटायर्ड आईजी दीपक कुमार (Retired IG Deepak Kumar) कहते हैं, उत्तराखंड में 4500 से ज्यादा का यह आंकड़ा चौंकाने वाला है. इसके लिए पुलिस को चाहिए कि वह एक अलग सिस्टम तैयार करें, ताकि इन अज्ञात लाशों की गुत्थी को सुलझाया जा सके. सामान्य पुलिसिंग के साथ इन अज्ञात लाशों के रहस्य को सुलझाना मुश्किल है. लिहाजा इसके लिए एक अलग टीम बनाकर इस पर काम किया जाना चाहिए. उनका कहना है कि भले ही इसे एक अज्ञात शव के रूप में देखा जाए, लेकिन इससे न केवल अपराधी और उसके मंसूबों को ना पकड़े जाने पर बढ़ावा मिलेगा, बल्कि अज्ञात शव के परिजनों को भी उसकी मौत के बाद मिलने वाले तमाम फाइनेंशियल बेनिफिट्स से भी उन्हें महरूम रहना पड़ सकता है. लिहाजा यह एक अज्ञात लाश या केस की बात नहीं है, बल्कि इस पर एक वृहद चिंतन होना चाहिए.