(Silkyara trapped in tunnel) सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को निकालने के लिए, दिल्ली Delhi से आई रैट माइनर्स (Rat Miners) टीम ने 36 घंटे की मैन्युअल ड्रिलिंग (manual drilling) की मांग की थी, लेकिन उन्होंने सिर्फ 27 घंटे में ही काम को सफलतापूर्वक पूरा किया।
वास्तविकता में, पिछले शुक्रवार शाम, जब अमेरिकी ऑगर मशीन (American Auger Machine) से ड्रिलिंग का काम केवल 12 मीटर बचा था, तो मशीन का ऑगर सरियों में उलझकर फंस गया। इसे बाहर निकालने का प्रयास करते समय, यह टूट गया। मशीन फंसने के कारण ड्रिलिंग का काम बंद होने से सभी निराश थे।
इस कठिन समय में, दिल्ली की रॉक वेल इंटरप्राइजेस कंपनी (Rock Well Enterprises Company of Delhi) ने रैट माइनर्स दल को बुलाया। इस टीम में करीब 12 लोग थे, जिन्होंने गत सोमवार को 3 बजे 800 मिमी के पाइप में बैठकर हाथों से खोदाई शुरु की। यह कार्य बिल्कुल भी आसान नहीं था।
इस दल के सदस्यों ने दिन-रात काम करते हुए, मंगलवार शाम 6 बजे तक मैन्युअल ड्रिलिंग पूरी की। इससे 800 मिमी के पाइप के माध्यम से फंसे मजदूरों को बाहर निकालने के लिए एक रास्ता बनाया गया, जिससे सभी मजदूरों को सुरक्षित रूप से बाहर निकाला गया।
कंपनी के मालिक वकील हसन ने बताया कि दो लड़के पाइप के अंदर बैठकर मिट्टी काटते थे, जबकि चार से पांच लड़के बाहर रहकर मलबा बाहर खींचते थे। इस दल में फिरोज कुरैशी, मुन्ना, नसीम, मोनू, राशिद, इरशाद, नासिर आदि शामिल थे।
(Rat Miners) रैट माइनर्स के लिए मलबा निकालने के लिए ट्रॉली को दिल्ली के सुरेंद्र राजपूत ने तैयार किया। उन्होंने बताया कि जब उन्हें इस हादसे की सूचना मिली, तो वह यहां निस्वार्थ रूप से मदद करने आए। उन्होंने विशेष प्रकार की ट्रॉली बनाई, जिससे मलबे को आसानी से बाहर निकाला गया। उन्होंने बताया कि 2006 में, हरियाणा के कुरुक्षेत्र (Kurukshetra of Haryana) के निकट एक बच्चा प्रिंस बोरवेल में फंसा था, जिसे उन्होंने निकलने में भी मदद की थी।
सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने के अभियान में, अमेरिकी ऑगर मशीन कुछ घंटों में सामने आई, लेकिन बाधाओं के सामने हांफ गई। इस समय, रैट माइनर्स की टीम ने अपनी करामात दिखाई। अंत में, ऑगर मशीन पर मानवीय पंजे भारी पड़े और इनके दम पर 17वें दिन सिलक्यारा परवान चढ़ा।
17 दिन तक बचाव अभियान में जुटी टीमें ने मजदूरों के जीवन को बचाने के लिए सभी विकल्पों पर काम शुरू किया। बड़कोट की ओर से माइनर सुरंग खोदने का विकल्प चुना गया, जहां ऑगर मशीन फंसी थी, वही सबसे संवेदनशील जरिया था जिसके माध्यम से मजदूरों को पहुंचाया जा सकता था।
ऑगर मशीन से गार्टर में फंसे टुकड़ों को एक-एक कर बाहर निकाला गया। साथ ही, विशेषज्ञों की सलाह पर झांसी से रैट माइनर्स की मदद लेने का फैसला हुआ, जिन्हें सुरंग के भीतर मैन्युअली खोदाई की महारत है। झांसी से ग्राउंड जीरो पर पहुंची रैट माइनर्स की टीम ने जैसे-जैसे आगे बढ़ी, उसकी करामात से अभियान के सदस्यों के चेहरों पर चमक दिखने लगी। आखिरकार जहां मशीन हार गई, वहां मानवीय पंजों ने कामयाबी दर्ज की।