जनगणना दिवस: उत्तराखंड की बदलती तस्वीर.. सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक ताना-बाना बिगड़ गया

उत्तराखंड

सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक ताना-बाना असंतुलित हो गया है। 24 साल में उत्तराखंड के शहरों और कस्बों में आबादी बढ़ी और बुनियादी व्यवस्थाएं चरमराईं।

उत्तराखंड राज्य की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्थाओं पर बुरी तरह से असंतुलन का प्रभाव पड़ा है। राज्य के 84.6 प्रतिशत भूभाग में 48% लोग रहते हैं, जबकि 14.4 प्रतिशत भूभाग में 52% लोग रहते हैं। पहाड़ों से बड़ी आबादी रोजगार, अच्छे इलाज और बेहतर जीवन शैली के लिए पलायन करती रहती है। जो जनसांख्यिकीय असंतुलन को जन्म देता है।

पिछले 24 वर्षों से, राज्य के 100 से अधिक शहरों और कस्बों में एक बड़ी आबादी रहती है। शहरों और कस्बों में पहले से ही आबादी के दबाव का सामना कर रहे बुनियादी सुविधाएं और जन सुविधाएं चरमरा गई हैं। सामाजिक नियम और परंपराएं भी प्रभावित हुई हैं, साथ ही अर्थव्यवस्था और राजनीतिक परिस्थितियां भी बदली हैं। विश्व जनसंख्या दिवस पर अमर उजाला ने इसे पूरा देखा। अमर उजाला के स्टेट ब्यूरो चीफ राकेश खंडूड़ी की रिपोर्ट इस प्रकार है:

देश की 37 तो उत्तराखंड की 47 फीसदी की दर से बढ़ी आबादी

2001 की जनगणना में देश की आबादी लगभग 103 करोड़ थी, लेकिन आज लगभग 141 करोड़ है। इस लिहाज से जनसंख्या लगभग 37% बढ़ी है। 2001 की जनगणना के अनुसार उत्तराखंड में 84.89 लाख लोग रहते थे। 2011 के बाद राज्य की आबादी 1.25 करोड़ होगी। यानी राज्य की आबादी 47% प्रति वर्ष बढ़ रही है। हाल ही में एक जनगणना नहीं हुई है, इसलिए आबादी का अनुमानित आंकड़ा कम या अधिक हो सकता है।

पहाड़ से बड़ी आबादी का पलायन, शहरों पर बढ़ा दबाव

हालाँकि जानकारों का मानना है कि राज्य की जनसंख्या वृद्धि बहुत तेज नहीं है, असंतुलन एक महत्वपूर्ण चिंता और चुनौती का कारण है। यह असंतुलन अधिक होगा, राज्य की आर्थिक और सामाजिक स्थिरता को कमजोर करेगा। इसलिए जनसांख्यिकीय असंतुलन को दूर करने के लिए नीति निर्माताओं को बहुत कुछ करना होगा और नीति बनानी होगी। 2018 की उत्तराखंड ग्राम्य विकास एवं पलायन निवारण आयोग की रिपोर्ट में बताया गया था कि राज्य के 3946 गांवों से 117981 लोग पलायन कर गए थे। 2022 तक, 6430 गांवों से 307310 लोग अस्थायी रूप से चले गए। बड़ी आबादी के पलायन से पर्वतीय क्षेत्रों में खेती-बाड़ी उजाड़ हो रही है, साथ ही अन्य आर्थिक और पारंपरिक व्यवसाय ठप हो गए हैं।

शहरों और कस्बों की धारण क्षमता से अधिक आबादी

लोगों ने पहाड़ी इलाकों में गांवों को छोड़कर छोटे कस्बों और शहरों में बस गए हैं। भू-धंसाव के कारण चर्चा में आया जोशीमठ इसका हाल ही का उदाहरण है। जोशीमठ पर अपनी क्षमता से अधिक आबादी का दबाव बढ़ चुका है, क्योंकि आसपास के गांवों से लोग लगातार शहर में आते रहे हैं। यह देहरादून, हल्द्वानी, हरिद्वार, रुड़की, रुद्रपुर, ऋषिकेश, कोटद्वार, श्रीनगर, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, टनकपुर, खटीमा और सितारगंज के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों का भी है। यूपी, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली की सीमाओं से सटे शहरों में पहले से ही पड़ोसी राज्यों की जनसंख्या का दबाव है। पहाड़ों से भी लोग इन शहरों में पलायन कर रहे हैं।

शहरों में बदले ग्रामीण क्षेत्र, 156291 हेक्टेयर कृषि रकबा घटा

हालाँकि, देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल और ऊधमसिंह नगर जैसे मैदानी जिलों के आसपास के ग्रामीण इलाके नए शहरों और कस्बों में बदल रहे हैं। यहां खेती लगातार घट रही है। कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 2011-12 से 2022-23 तक 156291 हेक्टेयर कृषि क्षेत्र घट गए। 2022-23 में 156291 हेक्टेयर कृषि भूमि थी, जो 2011-12 में 909305 हेक्टेयर में घट गई थी।

24 साल में घट गई पहाड़ की छह विधानसभा सीटें

जनसंख्या संतुलन खराब होने से पर्वतीय राज्यों का विधानसभा में राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी कम हुआ। राज्य की स्थापना के समय, मैदानी क्षेत्र में चालीस और पर्वतीय क्षेत्र में चालीस विधानसभा सीटें थीं। परिसीमन से पहाड़ में छह सीटें घट गईं। अब पहाड़ों और मैदानों में 34:36 का अनुपात है। भविष्य के परिसीमन में अधिक सीटें कम होने की उम्मीद है।

मैदानी सीटों में 41 से 72 प्रतिशत की दर से बढ़े मतदाता

मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या से जनसंख्या असमानता का आकलन आसानी से किया जा सकता है। मिसाल के तौर पर, 2012 से 2022 के बीच 10 वर्षों में राज्य की मैदानी सीटों पर 41% से 72% तक मतदाता बढ़ा। साथ ही, इस समय पर्वतीय क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या आठ प्रतिशत से 16 प्रतिशत तक बढ़ी।

10 साल में मैदानी क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या वृद्धि दर

विधानसभा मतदाता वृद्धि दर (प्रतिशत में)

धर्मपुर             72

रुद्रपुर 61

डोईवाला 56

सहसपुर 55

कालाढुंगी 53

काशीपुर 50

रायपुर 48

किच्छा 47

बीएचईएल रानीपुर 45

ऋषिकेश 41

10 साल में पर्वतीय क्षेत्रों में मतदाताओं की सबसे कम वृद्धि दर

विधानसभा मतदाता वृद्धि दर (प्रतिशत में)

लोहाघाट 16

डीडीहाट 16

यमकेश्वर 16

जागेश्वर 15

लैंसडौन 14

द्वारहाट            12

पौड़ी             12

चौबट्टाखाल 9

रानीखेत            9

सल्ट             8

 

Social Media Share