यह पंक्तियाँ दर्द और वेदना से भरी हुई हैं, जो कैप्टन दीपक सिंह के परिवार के गहरे दुख को व्यक्त करती हैं। उनका बलिदान न केवल देश के लिए महान है, बल्कि उनके परिवार के लिए एक अपूरणीय क्षति भी है। राखी का त्योहार, जो भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है, उन बहनों के लिए एक शून्य के समान है, जिनके इकलौते भाई ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। इस समय उनका दर्द और पीड़ा इन शब्दों में साफ झलकता है, जो मौत के प्रति एक भावुक पुकार है।
रक्षाबंधन से पहले ऐसी दुखद घटना किसी भी परिवार के लिए बेहद हृदयविदारक होती है। कैप्टन दीपक सिंह के बलिदान की खबर ने उनके परिवार को जैसे भीतर से तोड़ दिया है। राखी की तैयारी करने वाली बहनों के लिए यह एक अकल्पनीय पीड़ा है, क्योंकि वे उस भाई के लिए राखी चुन रही थीं, जो अब कभी उनकी कलाई पर नहीं बंधवा सकेगा।
पिता महेश सिंह, जो पुलिस विभाग से सेवानिवृत्त हो चुके हैं, खुद एक अनुशासनप्रिय और साहसी व्यक्ति होने के बावजूद अपने बेटे के जाने के गहरे दुख में हैं। उनके साथी और पूरा पुलिस परिवार भी इस शोक में शामिल है। कैप्टन दीपक सिंह के जाने का दर्द सिर्फ परिवार तक सीमित नहीं है, बल्कि आस-पड़ोस का हर व्यक्ति उनकी यादों में डूबा हुआ है, और उनकी वीरता को याद करते हुए आंसू बहा रहा है।
कैप्टन दीपक सिंह के घर बीते चार महीनों से खुशियों का माहौल था। चार महीने पहले उनकी एक बहन की शादी हुई थी। शादी में शामिल होने के लिए भाई दीपक सिंह भी देहरादून आए थे। इसके बाद अब चंद दिन पहले ही बड़ी बहन के घर बेटी ने जन्म लिया।
रक्षाबंधन से पहले परिवार में मातम
कैप्टन दीपक सिंह के परिवार के लिए यह समय अत्यंत कठिनाई और पीड़ा का है। बेटी की खुशियों में शामिल होने के लिए उनके माता-पिता कोच्चि गए थे, लेकिन वहां पर उन्हें अपने बेटे के बलिदान की हृदयविदारक खबर मिली। जिस पल का इंतजार खुशियों से भरा था, वह अचानक दुख और शोक में बदल गया।
बलिदानी के पिता महेश सिंह ने जैसे ही यह दुखद समाचार सुना, वे तुरंत देहरादून के लिए रात की फ्लाइट से रवाना हो गए। परिवार, जो महीनों से अपनी बेटी की खुशियों में मग्न था, एक पल में ही इस दुखदाई घटना से बिखर गया। रक्षाबंधन से ठीक पांच दिन पहले यह खबर आना और अपने इकलौते बेटे को खोने की पीड़ा, पूरे परिवार के लिए एक असहनीय क्षण है।
मेडल से भरा हुआ है घर का एक कमरा
कैप्टन दीपक सिंह, जो वर्ष 2020 में सेना में लेफ्टिनेंट के रूप में भर्ती हुए थे, ने 12वीं तक की पढ़ाई बुद्धा चौक के पास स्थित सेंट थॉमस स्कूल से की थी। बचपन से ही वे एक होनहार छात्र के रूप में जाने जाते थे। उनके पड़ोसियों के अनुसार, दीपक सिंह का एक कमरा उनके द्वारा जीते गए मेडल्स से भरा हुआ था। ये मेडल उन्हें न केवल पढ़ाई में बल्कि खेल-कूद में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए मिले थे। उन्होंने स्कूल के दौरान फुटबॉल, हॉकी और अन्य खेलों में भी सक्रिय रूप से भाग लिया था और कई प्रतियोगिताओं में पुरस्कार जीते थे।
एक साल का समय मांगा था शादी के लिए
दोनों बहनों की शादी के बाद अब 25 वर्षीय दीपक सिंह का ही शादी का नंबर था। परिवार उनकी शादी के लिए सपने संजो रहा था, लेकिन बताया जा रहा है कि कैप्टन दीपक सिंह ने शादी के लिए परिवार से एक साल का समय मांगा था। राष्ट्रीय राइफल की सेवाएं पूरी करने के बाद ही उन्होंने शादी करने का निर्णय लिया था।
पुलिस लाइन में परेड से ली प्रेरणा
कैप्टन दीपक सिंह बहुत छोटे थे जब उनके पिता देहरादून पुलिस लाइन में आकर रहने लगे थे। बचपन से ही वह पुलिस की परेड को देखते हुए बड़े हुए। 26 जनवरी और अन्य रैतिक परेड को देखने के लिए हमेशा दीपक सिंह पुलिस लाइन में मौजूद रहते थे। यहीं से उन्होंने फोर्स में भर्ती होने का निर्णय लिया था। इसी प्रेरणा का नतीजा हुआ कि वे 2020 में आईएमए से पासआउट हुए।