महेंद्र सिंह धोनी,पहचान बताने की जरूरत नहीं क्योंकि नाम ही काफी है।

खेल भारत विदेश

महेंद्र सिंह धोनी… पहचान बताने की जरूरत नहीं क्योंकि नाम ही काफी है। धोनी के भारतीय टीम में सिलेक्शन का सफर जितना दिलचस्प रहा है, कप्तान बनने का रास्ता उतना ही कांटों भरा। यकीन करना मुश्किल है कि 2007 में जो लोग धोनी के रांची वाले घर को भारत की वर्ल्ड कप में हार के बाद आग के हवाले कर देना चाहते थे, वही लोग उसी साल T-20 वर्ल्ड कप की जीत के बाद आतिशबाजी करते हुए धोनी की झलक पाने को बेताब खड़े थे। इस पूरे घटनाक्रम के बारे में आगे बताएंगे लेकिन अब आपको लेकर चलते हैं साल 1992…! इस वक्त माही को उनके जानने वाले मही के नाम से पुकारते थे।

छठी कक्षा के छात्र थे और स्कूल फुटबॉल टीम के गोलकीपर। क्रिकेट टीम के विकेटकीपर का परिवार बेटे की पढ़ाई को लेकर सीरियस था। उधर उसका पत्ता कटा और इधर धोनी की बतौर विकेटकीपर क्रिकेट टीम में एंट्री हो गई। इसी उम्र से धोनी खेल को लेकर बहुत जुनूनी थे। बाकी दुनिया पढ़ाई के बाद बचे समय में क्रिकेट खेला करती थी, धोनी क्रिकेट से बचे समय में थोड़ी-बहुत पढ़ाई कर लेते थे। मेहनत रंग लाई और छोटी सी उम्र में बड़ा नाम बन गया। धोनी को क्रिकेट खेलते देखने के लिए कई किलोमीटर दूर से लोग फील्ड पर पहुंच जाते थे।

बिहार झारखंड में टेनिस बॉल स्टार प्लेयर्स को 500-1000 रुपए देकर नाइट टूर्नामेंट खेलने बुलाया जाता है। उस दौर में दिन से लेकर रात तक होने वाले मुकाबलों में धोनी से बड़ा टेनिस बॉल बल्लेबाज पूरे इलाके में दूसरा नहीं था। लोग धोनी के खेल पर जान छिड़कते थे और साथ में अफसोस भी करते थे कि दिल्ली-मुंबई में होता तो आसानी से इंडियन टीम में जगह बना लेता। यहां तो प्रतिभा गांव-मोहल्ले की मिट्टी में दम तोड़ देगी।

पर कहते हैं ना कि अगर ऊपर वाले ने प्रतिभा दी है तो दुनिया के सामने लाने का जरिया भी वही देगा। 18 साल की उम्र में धोनी ने बिहार की तरफ से रणजी खेला था। 22 के हुए तो पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में बतौर टिकट कलेक्टर नौकरी लग गई। छोटे शहरों की बड़ी समस्या यही होती है कि बच्चों को जब तक सरकारी नौकरी ना मिल जाए, मां-बाप आसमान सर पर उठाए रहते हैं। नौकरी चाहे चपरासी की ही क्यों ना हो लेकिन सरकारी होनी चाहिए। माही ने नौकरी कर तो ली लेकिन रास नहीं आई। रेलवे की तरफ से क्रिकेट खेले और एक दिन सब कुछ छोड़कर घर लौट गए।

धोनी रेलवे के काम में सबसे बेहतरीन थे लेकिन फिर भी उनके सीनियर माही से जलते थे। यह काम भी करता है और क्रिकेट भी खेल लेता है, कैसे? जानबूझकर धोनी को हद से ज्यादा काम दिया जाता था और उनका आत्मविश्वास तोड़ने की भरसक कोशिश की जाती थी। इन सब चक्करों में पड़ कर धोनी की जिंदगी थम गई थी। खैर, माही लौट आए और खुद को क्रिकेट में झोंक दिया।

2003-04 में इंडिया ए की टीम केन्या और जिंबाब्वे के दौरे पर जा रही थी। धोनी को चुन लिया गया। 7 कैच…4 स्टंपिंग…और 7 मुकाबलों में कुल 362 रन। माना कि विरोधी टीमें कमजोर थीं लेकिन अगर वहां ताकत नहीं दिखाते, तो शायद टीम इंडिया में कभी जगह नहीं बना पाते। उस वक्त सोशल मीडिया का दौर नहीं था लेकिन तब भी पूरे देश में कोहराम मच गया। कहा गया कि लंबी जुल्फों वाला एक बल्लेबाज आया है, जो हेलीकॉप्टर उड़ाकर छक्का मारता है। 2004 में भारत के लिए डेब्यू किया लेकिन बगैर खाता खोले आउट। अगली कुछ पारियां भी सस्ते में सिमट गईं।

डर था कि एक तो छोटा शहर और उस पर से कोई बैकिंग भी नहीं, अगर जल्दी बल्ला नहीं बोला तो शायद भारतीय टीम में जगह नसीब नहीं होगी। वनडे की पहली 4 पारियों में केवल 22 रन। विशाखापत्तनम का मैदान और पाकिस्तान के खिलाफ 123 गेंदों पर 148 रन। सबसे बड़े अपोजिशन के खिलाफ सबसे बड़ी पारी…! अब तो कोई माई का लाल चाह कर भी माही का बाल बांका नहीं कर सकता था। थोड़े ही दिनों के बाद श्रीलंका के खिलाफ किसी भी विकेटकीपर बल्लेबाज की तरफ से खेली गई 183 रनों की सबसे बड़ी पारी। एक दिवसीय सीरीज भारत के नाम और धोनी को मैन ऑफ द सीरीज का खिताब। अब यह तय हो गया था कि ये खिलाड़ी लंबा खेलेगा।

एक दिवसीय वर्ल्ड कप 2007 में भारतीय टीम का प्रदर्शन शर्मनाक रहा और हार के बाद क्रिकेट फैंस का गुस्सा भड़क उठा। कुछ लोग नाराजगी में माही के घर को आग लगा देना चाहते थे। उनके घर के बाहर भीड़ काफी बढ़ गई और मुर्दाबाद के नारों से आसमान भर गया। जिस शहर ने धोनी का क्रिकेट के प्रति जुनून देखा था, आज वही शहर माही के लिए अपशब्द सुन रहा था।

सितंबर 2007 में राहुल द्रविड़ से एकदिवसीय कप्तानी लेकर धोनी को सौंप दी गई और उसी महीने घोषित हुई T-20 टीम की कप्तानी भी माही के हिस्से आई। धोनी की रणनीति रंग लाई और पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल में आखिरी ओवर कम अनुभवी जोगिंदर शर्मा को देकर धोनी ने इतिहास बना दिया। भारत T-20 विश्व कप जीत गया। अब उनके घर के बाहर बड़े-बड़े पोस्टर हाथों में लेकर लोग आतिशबाजी कर रहे थे। महेंद्र सिंह धोनी जिंदाबाद के नारों से रांची के साथ-साथ पूरा देश गूंज रहा था। जिस वर्ल्ड कप को सचिन और द्रविड़ जैसे सीनियर्स ने छोटा-मोटा समझकर खेलने से इंकार कर दिया, उसी से धोनी ने समूचे हिंदुस्तान को जश्न के समंदर में डुबा दिया। अब उस T-20 वर्ल्ड कप की जीत को 15 साल हो गए हैं।

हर दिल फिर एकबार उन हसीन यादों को दोहराना चाहता है। ऑस्ट्रेलिया से T-20 वर्ल्ड कप जीत भारत लाना चाहता है।

Social Media Share

5 thoughts on “महेंद्र सिंह धोनी,पहचान बताने की जरूरत नहीं क्योंकि नाम ही काफी है।

  1. Pingback: y2k168
  2. Hello, Neat post. There is an issue together with your website in web explorer, would check this… IE still is the marketplace leader and a good component of folks will miss your great writing due to this problem.

  3. Pingback: mostbet
  4. Pingback: ปลูกผม

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *