जब इंसान जिद्दी, महकमें जिद्दी, सरकारें जिद्दी तो क़ुदरत क्यों न ज़िद दिखाए!

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इंसान ही तीर्थ यात्री होते हैं और इंसान अन्न खाता है यानी कि उसका स्वयं का विवेक होना लाज़िमी है। किन्तु आज दुनिया में इंसान की फ़ितरत जिद्दी होने या ईगो शांत करने की हो गयी है, लिहाज़ा क़ुदरत भी अपने इगो शांत करने के ट्रेलर मात्र दिखा रही है।

कल एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना में गंगोत्री से लौटते सात गुजराती श्रद्धालुओं की मौत हो गयी। बीते डेढ़ माह से उत्तराखंड में यात्रा करने के अनुकूल परिस्थितियां नहीं हैं । ज़ाहिर है यह यात्री एक सप्ताह पूर्व ही अपने घरों से निकले होंगे, तो क्या यह यात्री कुछ सप्ताहों के लिए अपनी यात्रा को स्थगित नहीं कर सकते थे। ऐसे सैकड़ों अन्य जत्थे इस मौसम में भी यात्रा की ज़िद पर अड़े हैं। आये दिन दुर्घटनायें हो रही हैं, उत्तराखंड का सारा सिस्टम राहत-बचाव में अपनी ऊर्ज़ा जाया कर रहा है ऊपर से राज्य की इंटरनेशनल लेबल पर गलत छवि भी प्रसारित हो रही है।

वहीं सरकारें भी कम जिद्दी नहीं हैं, श्रद्धालुओं व सैलानियों के नंबर के डेटा को ऊंचा करने की जिद में यात्रा को नियंत्रित या स्थगित करने का कड़ा फैसला नहीं ले पा रही है, जबकि इस मौसम में यात्रा से जो थोड़ा बहुत रेवेन्यू स्टेट को मिल भी रहा होगा उससे 10 गुना ज्यादा तो सिस्टम को रेस्क्यू में खर्च करना पड़ रहा है। तमाम तथाकथित हाइवेज, गगनचुम्बी सेतु, लंबी टनल सभी कुछ एक तरह से जिद या ईगो सैटिस्फैक्शन की श्रेणी में हैं।

सनद रहे, क़ुदरत की जिद का पैमाना इंसानी ज़िद से करोड़ों गुना बड़ा हो सकता है।

C@ अजय रावत की फेसबुक वाल से!

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