हल्द्वानी के बनभूलपुरा में पत्थरों की बारिश के बीच महिला बल पुरुषों से आगे बढ़ रहे थे। इन्हें न तो क्षेत्र का पता था और न ही रास्तों का पता था। वह सुबह हल्द्वानी पहुंची और दिन भर जांच की। फिर फ्लैग मार्च को बनभूलपुरा भेजा।
तंग गलियों, टेड़े-मेढ़े रास्ते, और हर गली का एक अंतिम सिरा। बनभूलपुरा की गलियों की भूलभुलैया कुछ ऐसी है। यहाँ से बाहर निकलने के लिए लोगों को अक्सर एक ही स्थान पर घूमना पड़ता है। पुरुषों के साथ महिला पीएसी कर्मचारियों को ऐसे भूलभुलैया में भेजा गया, जहां वे न तो स्थानीय मार्गों को जानते थे और न ही क्षेत्र के बारे में कुछ भी जानते थे।
इसलिए युवा पथराव से बचने के लिए गलियों में भागते रहे। कुछ लोगों ने इलाके से बचाया, जबकि कुछ पत्थर बारिश के बीच किसी तरह बाहर निकल गए। इसके बावजूद, वे इस घटना से घबरा गए हैं।
शुक्रवार को नैनीताल रोड पर एक महिला पुलिसकर्मी को लंगड़ाते हुए चलते देखा गया, जिसमें एक व्यक्ति के हाथ में पट्टी बंधी हुई थी। पुलिस बसों में पुलिसकर्मी अपनी साथियों से मिलते रहे। चोटिल पुलिसकर्मियों से पूछने पर पता चला कि वे कार्रवाई के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे।
हम सिर्फ आदेश मिलने पर चले गए। चौंकाने वाली बात यह थी कि इस क्षेत्र में भेजी गई महिला सेना को स्थानीय भूगोल की पूरी जानकारी नहीं थी। रुद्रपुर से टीम हल्द्वानी पहुंची और शाम को बनभूलपुरा जाने को कहा गया. लेकिन उन्हें सिर्फ फ्लैग मार्च करना था। लेकिन जब वे वहां पहुंचे तो विरोध शुरू हो गया था।
महिलाओं को रोकने के लिए आगे बढ़ने पर हिंसा हुई। जेसीबी टूट गया और आग लग गई। पत्थर सड़क पर गिरते जा रहे थे। लेकिन कहीं से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखाई देता था। बताया कि यह स्थान उनके लिए पूरी तरह से नया था। यहां के बारे में बहुत कुछ नहीं जानता था, न ही रास्तों के बारे में कुछ पता था। रास्ते में आग लगी हुई थी।
जिस गली में वे घुस रहे थे, उनके सामने कुछ दिखाई देता था। तंग गलियों में घरों की छत से पत्थर गिर रहे थे। वह लगातार गली से बाहर निकल जाते थे, लेकिन फिर वहीं वापस आ जाते थे। मैं नहीं जानता था कि कहां जाएँ। इस दौरान उन्होंने कई घरों के दरवाजे भी खटखटाए, लेकिन कोई आसरा नहीं मिला। रात भर साथियों का इलाज करते रहे, अब दोपहर होने को है, लेकिन मैं अभी तक क्या करूँ?
सभी करीब 30 घंटे से जगे हुए हैं
एक घायल पुलिसकर्मी ने कहा कि उसके पैर में पत्थर लगने से चोट लगी है और अब चलने में भी दर्द होता है। बताया गया कि रुद्रपुर से बृहस्पतिवार की सुबह करीब 5 बजे हल्द्वानी जाने का आदेश था।इसलिए वे सुबह चार बजे उठ गए थे। साथ ही हल्द्वानी आने से पहले कहां जाना है पता नहीं था। सुबह 8 बजे करीब हल्द्वानी पहुंचे और पनचक्की क्षेत्र में जांच करने लगे। दोपहर में सभी को कोतवाली में पहुंचने को कहा गया, जिस पर पुलिस पहुंच गई।
शाम को वे पथराव करते रहे, आग में बचते-बचते फिरे और रात को अपने साथियों का इलाज करते रहे। दोपहर के तीन बज चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई वापस जाने का आदेश नहीं आया। बवाल के बाद बस में ही दिन बीत गया है।
बनभूलपुरा में हुई हिंसा और आगजनी की घटना से कई नवोदित पुलिस ट्रेनी महिला जवानों को भी गुस्सा आया है। अस्पताल में भी उनके आंसू बार-बार बह रहे थे। बेस अस्पताल की महिला स्टाफ नर्स मनीषा ने बताया कि घटना से बुरी तरह डरी हुई एक 21 से 22 साल की पुलिस की जवान पहुंची थी। पानी पिलाकर, ढांढस दिलाकर, कंफर्ट देने की कोशिश की, लेकिन उसकी आंखों से आंसू नहीं रुक रहे थे। उसके भाई बाद में उसे अपने साथ ले गया।
बनभूलपुरा में कार्रवाई के दौरान प्रशासन ने पीआरडी जवानों को भी भेजा। इसमें न तो युवा लोगों की उम्र देखी गई थी और न ही उनके स्वास्थ्य की जांच की गई थी। स्पोर्ट्स स्टेडियम में PRD जवानों को भी स्थानांतरित किया गया। जिसमें राजेंद्र प्रसाद नामक एक पीआरडी युवा चोटिल हो गया। उनकी आंख के नीचे कांच से चोट लगी। बेस अस्पताल में उनका उपचार हुआ। वहीं एक युवा उमेश कुमार को सिर पर चोट लगी।