दून का सिद्धपीठ मां डाट काली मंदिर पिछले कई वर्षों से लाखों भक्तों की आस्था का स्थान रहा है। मंदिर में शीश नवाने से ही मां डाट काली की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। 102 वर्षों से मंदिर में अखंड ज्योति जल रही है। भक्त दून और कई अन्य राज्यों से मां को देखने आते हैं।
220 साल पहले उत्तराखंड-यूपी बार्डर पर स्थित सिद्धपीठ मां डाट काली मंदिर का निर्माण हुआ था। माना जाता है कि मंदिर पहले आशारोड़ी के आसपास एक जंगल में था। अंग्रेजों के समय सहारनपुर रोड पर एक टनल बनाया जा रहा था, लेकिन संस्था के निर्माण के लिए खोदा गया मलबा फिर से वहां भर गया।
तब मां घाठेवाली ने कहा कि महंत के पूर्वजों ने टनल के पास मंदिर बनाने का सपना देखा था। 1804 में मंदिर को वहाँ से निकालकर टनल के पास स्थापित किया गया। इसके बाद मंदिर को मां डाट काली नाम दिया गया।
मंदिर के महंत रमन प्रसाद गोस्वामी कहते हैं कि मां डाट काली उत्तराखंड और पश्चिम उत्तर प्रदेश की इष्ट देवी हैं। मंदिर में दिल से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है। शनिवार को मां डाटकाली को लाल चुनरी, नारियल और फूल चढ़ाना बहुत महत्वपूर्ण है। मंदिर में हनुमान, गणेश और मां डाट काली की प्रतिमाएं भी हैं।
नवरात्र पर बहुत से भक्त आते हैं
लाखों लोग देश भर से मां डाट काली को नवरात्र में देखने आते हैं। मंदिर में पहले दिन से ही दर्शन करने के लिए सुबह से लोगों की भीड़ लग जाती है।
नया कार खरीदते समय मां को देखें
नए वाहन खरीदने पर भक्त मां डाट काली मंदिर जाते हैं, जहां वे दर्शन करते हैं और वाहन पर लाल चुनरी बंधवाते हैं। महंत कहते हैं कि मां डाट काली को देखकर चुनरी बाँधने से भक्तों की रक्षा होती है और उनकी यात्रा शुभ होती है।
यात्रा मां भद्रकाली के दर्शन के बाद ही समाप्त होती है।
मां डाट काली और उनकी बहन मां भद्रकाली के दर्शन होते हैं। उन्हें देखकर भक्तों की यात्रा पूरी मानी जाती है। मां भद्रकाली का मंदिर मां डाट काली मंदिर से सौ मीटर आगे है।