“दिवाली की उस रात की यादें: 41 जिंदगियां फंसी थीं सुरंग में, इस बार श्रमिकों ने लिया महत्वपूर्ण फैसला”

उत्तराखंड

दिवाली का दिन याद करके श्रमिकों की आज भी रूह कांप उठती है। पिछले साल सिलक्यारा सुरंग में भूस्खलन के कारण दिवाली के दिन 41 श्रमिक फंस गए थे। इस साल दिवाली के आते ही श्रमिकों को वह भयावह दिन फिर से याद आ गया।

पिछले साल दीपावली के दिन उत्तरकाशी में सिलक्यारा सुरंग हादसे के कारण 41 श्रमिकों की दिवाली काले साये में बदल गई थी। हादसे के बाद कुछ ही श्रमिक वापस काम पर लौटे। उनका कहना है कि आज भी उस दिन को याद करके उनकी रूह कांप जाती है, और वे उस भयावह दिन को याद नहीं करना चाहते।

चारधाम सड़क परियोजना के तहत यमुनोत्री हाईवे पर निर्माणाधीन 4.5 किलोमीटर लंबी सिलक्यारा-पोलगांव सुरंग में पिछले साल 12 नवंबर, दीपावली के दिन सुबह 4-5 बजे भूस्खलन का हादसा हुआ था। उस समय श्रमिक रात की शिफ्ट खत्म कर दिवाली पर बाहर निकलने ही वाले थे, जब भूस्खलन के कारण सुरंग का मुंह बंद हो गया और 41 श्रमिक अंदर फंस गए। फंसे हुए श्रमिकों में उत्तर प्रदेश के लखीमपुरखीरी के मंजीत भी शामिल थे।

फोरमैन के पद पर कार्यरत मंजीत ने कहा कि वह उस हादसे वाले दिन को याद नहीं करना चाहते, क्योंकि अगर उन्होंने याद किया तो वे काम पर ध्यान नहीं दे पाएंगे। उन्होंने बताया कि पिछले साल वह दिवाली नहीं मना सके थे। लेकिन इस बार उन्होंने दिवाली के लिए छुट्टी ली है और 3 नवंबर को वापस काम पर लौटेंगे। मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश के घरवासपुर गांव के निवासी अखिलेश कुमार भी उसी सुरंग में सर्वेयर के रूप में कार्यरत हैं।

अखिलेश उस हादसे के दिन को याद करके सिहर उठते हैं। उन्होंने कहा कि वह दिवाली मनाने के लिए अपने गांव आए हैं और पूरे एक महीने की छुट्टी पर रहेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि हादसे के चार दिन बाद उनकी बेटी का जन्म हुआ था, जिसका नाम उन्होंने भाग्यश्री रखा।

बिहार निवासी सोनू शाह सिलक्यारा सुरंग प्रोजेक्ट में सीनियर इलेक्ट्रीशियन हैं, बताया कि वह उस दिन को याद नहीं करना चाहते, बताया कि अब वह सुरंग के अंदर नहीं बल्कि बाहर ही काम करते हैं।

एक अन्य क्रेन ऑपरेटर सुशील कुमार ने बताया कि वह पिता की बीमारी के कारण हादसे के बाद सिलक्यारा वापस नहीं लौटे। हालांकि, वह उस दिन को कभी नहीं भूल सकते। उन्होंने कहा कि वह अब अपने गांव में मजदूरी करके परिवार का पालन कर रहे हैं। सुशील ने यह भी बताया कि हादसे के बाद उन्होंने बचने की उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन जब चौबीस घंटे में ऑक्सीजन की सप्लाई शुरू हुई, तो उनकी उम्मीद फिर से जाग गई।

 

 

 

 

 

 

 

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